मैं अपनी मासूमियत खो चुका हूं

मैं अपनी मासूमियत खो चुका हूं बदले जमाने में खुद को ढूंढ रहा हूं  रंग फूल का फीका पड़ गया है जमाने का यह रंग जो सर  चढ़ गया है जो मैं अब हूं पहले ऐसा नहीं था समझ मेरी कम थी मगर दर्द में सबका समझता था विचारों को समझने में देरी थी मगर निभाने की जल्दी थी दिल का पत्थर पिघल मगर सबसे हमदर्दी थी यूं ही नहीं यह रुक मोड़ा है  किन्ही जज्बातों ने तो छोड़ा है धोखो से मासूमियत का रिश्ता छूट गया हल्का था ना यह मन जल्दी टूट गया जिम्मेदार अकेला मैं भी नहीं इसका दोस्त,समय,जगह उनका भी हाथ है मेरी बदली मुस्कान में इनका भी साथ है वह थी जो पहले हंसी फिर कभी नहीं आयी मुखोटे बदले मगर वह बात कभी नहीं आयी जो अभी उड़ रहा है यह तूफान में परिंदा  बस मां की आंखों की मासूमियत से है जिंदा जिनमें बदलने का ढंग नहीं आता जमाने के चढ़े रंग का असर नहीं आता बनावटी हंसी से मैं अब रो चुका हूं मैं अपनी मासूमियत खो चुका हूं

बस तुम चलते रहना

                         बस तुम चलते रहना


जिंदगी में संघर्ष बहुत है हिम्मत से तुम डटे रहना

हार भले हो पर तुम ना थकना

बस तुम चलते रहना


संकल्प तुम्हें हौसला देंगे 

मुश्किलों में भी तुम अचल रहना 

छवि अपनी बरकरार रखना 

बस तुम चलते रहना


बाधाएं तो आएंगी ही 

तुम हिम्मत अपनी बांधे रखना 

झुकाने आएंगे बहुत मगर 

तुम डटे रहना बस तुम चलते रहना


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